कोई बहुत चुप्पा-सा है मेरे भीतर
मगर बहुत शोर क्यूँ हुआ करता है फिर ?
एक सिसकी-सी लेकर चुप हो जाता है वो !
एक बेआवाज़-सी आह भरता है वो !
और हमेशा मेरे भीतर तन्हा ही रहता है,
और तन्हा ही रहना चाहता है वो !
जिन्दगी में ये जो चारों तरफ शोर है बहुत,
और आशंकाएं हैं ये जो कितनी ही.....!
धरती पे यह जो प्राकृतिक ख़ूबसूरती है,
और उसके बीच आदम की यह बदसूरती !
और इसके बावजूद खुद के सभ्य होने का दंभ !!
कहना चाहता है वो इस सब पर कुछ,
मगर हमेशा हिचक जाता है...!
तन्हा है और तन्हा रहना चाहता है !!
मगर एक बात बताऊँ यार ?
ये रोता है अक्सर जार-जार !
जिसे सुन नहीं पाता अन्य दूसरा कोई,
और मैं भी सुनकर चुप ही रह जाता हूँ,
और कहो कि चुप्पा हो जाता हूँ !!
भाषा में कहो तो कहने के खतरे बहुत हैं...
क्योंकि खुद का सामना करने से लोग डरते बहुत हैं !
इसीलिए कोई सच,जो खुद के बारे में कहा जाता है ,
काटने को दौड़ता है आदम,गोया तुम्हें खा जाता है !!
मेरा दिल है शायद वो,या कि कोई और ही हो,
तन्हा ही रहता है,तन्हा ही रहना चाहता है !!
किसी से कोई भी वाजिब बात भी कहो...
तो उसको वो न जाने क्यूँ कटु ही लगती है !
उसकी रूह जाने कहाँ गयी हुई लगती है ?
बस इसी एक अहंकार के कारण दोस्तों...
दुनिया में तरह-तरह की जंग छिड़ी हुई लगती है !
आदम अपना दंभ अपना अहंकार कभी ना मेट पाए शायद,
इसलिए मेरे भीतर का कोई "वो",
तन्हा ही रहता है और तन्हा ही रहना चाहता है !!
उसकी रूह जाने कहाँ गयी हुई लगती है ?
जवाब देंहटाएंबस इसी एक अहंकार के कारण दोस्तों...
दुनिया में तरह-तरह की जंग छिड़ी हुई लगती है !
आदम अपना दंभ अपना अहंकार कभी ना मेट पाए शायद,
इसलिए मेरे भीतर का कोई "वो",
तन्हा ही रहता है और तन्हा ही रहना चाहता है !!
sunder bhav
rachana
bhutnaath ji bahut din ke baad aap mere blog par prakat huye hai ---------aabhar--------bhai tanhaiyon se nikaliye
जवाब देंहटाएंtanhaayi ki racha bhi tanhaa si nhi lagi....
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