रविवार, 16 अक्तूबर 2011

बाकी आप सब समझदार हो....!!

        मित्रों,बहुत सी बातें रोज ऐसी हो जाती हैं,जिस पर व्यतीत होकर हम रोने-रोने को हो जाते हैं,मगर कुछ करने को नहीं हो पाते,क्योंकि कुछ कर पाना हमारी समझ से संभव नहीं होता....एक अकेला चना भाड़ क्या फोड़े की तर्ज़ पर और हम भीतर-भीतर रो ही पड़ते हैं,मगर रोने से ना कभी कुछ बदला है और ना बदलेगा....है ना...!!
             दरअसल हर संवेदनशील ह्रदय एक तो वैसे ही तड़पता रहता है,वर्तमान की दिशा एवं दशा देखकर... किसी के ऐसे उदगार उसकी भावनाओं को एकदम से उबाल दे देते हैं और वो रूंधा-रूंधा-सा हो ही जाता है...मगर चिंता की बात यह है कि हम अपने गुस्से को इस तरह से दबाये दिए जा रहे हैं...और फिर रोये-रोये से भी हुए जा रहे हैं,ये दोनों बातें साथ-साथ नहीं चल सकती...एक सतर्क-सजग नागरिक के रूप में हमें क्या करना है,उस पर ना सिर्फ हमें सोचना है,अपितु करते हुए भी दिखना है,करना है....तब ही कोई आशा है....बाकी आप सब समझदार हो....!! 

1 टिप्पणी:

  1. .एक सतर्क-सजग नागरिक के रूप में हमें क्या करना है,उस पर ना सिर्फ हमें सोचना है,अपितु करते हुए भी दिखना है,करना है....तब ही कोई आशा है....

    आपकी सोच बहुत अच्छी लगी राजीव जी.
    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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